कक्षा 11-अंतरा अध्याय 14-नागार्जुन का समाधान
कक्षा 11-अंतरा अध्याय 14-नागार्जुन का समाधान
वैद्यनाथ मिश्र, जिन्हें उपनाम नागार्जुन से जाना जाता है, 30 जून 1911 को बिहार के सतलखा गाँव में जन्मे। वे एक महान भारतीय दार्शनिक और न्यायशास्त्री थे। उनकी मृत्यु 5 नवम्बर 1998 को हुई।
नागार्जुन ने अपने जीवनकाल में दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी विचारधारा और सिद्धान्तों ने भारतीय दर्शन को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने शून्यता की सिद्धान्तिकता को विस्तारपूर्वक विवेचना की और मध्यमार्ग के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी रचनाएं, जैसे कि “मध्यमक शास्त्र” और “शून्यतासप्तशती,” विद्यार्थियों और दार्शनिकों के बीच अभिव्यक्ति के केंद्रीय कार्यक्षेत्र रही हैं।
नागार्जुन के साहित्यिक योगदान ने उन्हें महान दार्शनिकों में स्थान प्राप्त किया है और आज भी उनके सोच और तत्वों का महत्व बना हुआ है। उनकी सिद्धान्तवादी दृष्टिकोण और न्यायशास्त्र के क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण योगदानों ने उन्हें दिग्गज दार्शनिक के रूप में पहचाना जाता है।