अध्याय 5-मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया का समाधान
यह अध्याय विस्तार से मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है। इस अध्याय में, हम यह जानेंगे कि मुद्रण संस्कृति का आधुनिक दुनिया के साथ कैसे संबंध है और इसका क्या महत्व है।
मुद्रण संस्कृति वास्तव में आधुनिक दुनिया के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। मुद्रण की संभावनाएं स्क्रिप्ट और बुनियादी संरचनाओं के विकास के साथ जुड़ी हुई थीं। मुद्रण के बिना, स्क्रिप्ट और संस्कृति की विकास की रफ्तार अधिक धीमी हो जाती।
यह बात सत्य है कि आधुनिक मुद्रण और प्रेस के उदय के बिना, आधुनिक दुनिया के विकास का इतिहास अलग होता। मुद्रण संस्कृति के बिना, आधुनिक मानव समाज की उन्नति अधूरी रह जाती।
इसलिए, हम कह सकते हैं कि मुद्रण संस्कृति आधुनिक दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
सन् 1450 ईसा में, जब गुटेनबर्ग ने मुद्रण की प्रक्रिया को स्थापित किया था, तब से मुद्रण का संस्कृति विश्व में फैल गया है। इससे पहले, किसी भी पुस्तक या दस्तावेज को हाथ से लिखा जाता था, जो समय और श्रम से भरा होता था। गुटेनबर्ग ने एक मुद्रण प्रक्रिया के जरिए एक साथ कई प्रतियां बनाने का तरीका विकसित किया जिससे अधिक पुस्तकों और दस्तावेजों को अधिक आसानी से और तेजी से प्रकाशित किया जा सकता था।
इससे पहले, लोग अपनी सूचनाओं को बातचीत और स्मरण में रखते थे। मुद्रण के संस्कृति के साथ, जितनी जल्दी संभव हो सके, सूचनाएं और ज्ञान सबसे आसानी से दुनिया भर में पहुंच सकते हैं। मुद्रण के संस्कृति ने भारत के विकास में भी एक अहम भूमिका निभाई है।
भारत में मुद्रण का संस्कृति सन् 1556 ईसा में मुगल शासक अकबर के शासनकाल में शुरू हुआ।