कक्षा 10 अध्याय 7 रविंद्रनाथ ठाकुर – आत्मत्राण का समाधान कक्षा 10 अध्याय 7 रविंद्रनाथ ठाकुर – आत्मत्राण का समाधान रविंद्रनाथ ठाकुर एक महान कवि थे जो न केवल भारतीय साहित्य में बल्कि विश्व साहित्य में भी अपनी विशेष पहचान बनाए रखी है। उनकी कविताओं और उपन्यासों में एक आत्मत्राण का भाव निहित होता है जो हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। इस लेख में हम रविंद्रनाथ ठाकुर की कुछ प्रसिद्ध कविताओं के माध्यम से उनके आत्मत्राण के संदेश को समझेंगे| कवि, लेखक, दार्शनिक, संगीतकार, रचनात्मक कलाकार और शिक्षक रवींद्रनाथ टैगोर 7 मई 1861 को कोलकाता में जन्मे थे। उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर भी एक कवि थे। रवींद्रनाथ ने अपनी शिक्षा घर में ही प्रारंभ की थी, जहाँ उन्हें बंगाली, संस्कृत, अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और जर्मन भाषा की शिक्षा दी जाती थी। रवींद्रनाथ ने अपनी पहली कविता 8 वर्ष की उम्र में लिखी थी और उन्होंने बाद में भारत के विभिन्न भागों में घूमकर उनकी रचनाओं का पाठकों के साथ सम्पर्क किया। रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन के दौरान कई कविता संग्रह लिखे जिनमें से सबसे मशहूर हैं गीतांजलि और गोरा। गीतांजलि को उन्होंने अपनी माता के सम्मान में लिखा था। रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन के दौरान भारत के स्वाधीनता आंदोलन के समर्थन में अपना सारा जीवन लगाया।