अध्याय 2-भारत में राष्ट्रवाद का समाधान

भारत में राष्ट्रवाद का उदय उस समय से शुरू हुआ था जब भारत में अंग्रेजों की शासनकाल शुरू हुई थी। इस समय अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति और भाषा को भारत में फैलाने का प्रयास किया था। इस तरह के प्रयासों से भारत में जनसंख्या के बढ़ते विस्तार के कारण भारतीय नागरिकों में एकता का अनुभव शुरू हुआ।

स्वतंत्रता के बाद भारत में राष्ट्रवाद का अधिक महत्व हुआ और राष्ट्रवाद की भावना बहुत तेजी से बढ़ी। राष्ट्रवाद की भावना को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने विभिन्न कार्यक्रम और योजनाएं शुरू की। इन कार्यक्रमों में से एक है ‘हिंदी चार्टर’। इसमें हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया जाता है और इसे देश की राजभाषा के रूप में स्थापित किया जाता है।

भारत में राष्ट्रवाद का समाधान अध्याय 2 के तहत बहुत महत्वपूर्ण है। भारत के स्वतंत्रता के बाद, राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ी और राजनीतिक दलों के मतभेदों ने देश को दोषित किया। इस समस्या के समाधान के लिए, भारत में राष्ट्रवाद की व्याख्या की जाने लगी।

भारत में राष्ट्रवाद के उदय से पहले, भारत एक अनेकता में एकता की उदाहरण थी। अन्य देशों के तुलनात्मक असतता से भिन्नता दिखाई नहीं देती थी। हालांकि, ब्रिटिश साम्राज्य के आने से भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन उत्पन्न हुआ। इस आन्दोलन के दौरान, भारतीय राष्ट्रवाद की बढ़ती मांग ने भारत में राष्ट्रवाद की स्थापना को समर्थन दिया।

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